गुरुवार, 17 मार्च 2011

प्रेम की भाषा जाने कौन




प्रेम की भाषा कौन जाने
जो प्रेम करे वही पहचाने।
मौन शब्द में ईश वास करे
अपना सब कुछ त्याग करे।।

इन्सान में हो या जानवर
अटूट बन्धन ही प्रेम है।
जो प्रेम किसी से न कर पाये
जन्म लेना बेकार है।।

यह डोर है, दिल की हिलोर है
यह भावना जिस ओर है।
दुख भी वहां सुख प्योर है
न अपना-पराया, न जीत-हार है।।
-मंगल यादव, नोएडा

4 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

अटूट बन्धन ही प्रेम है।---सुन्दर..

Shalini kaushik ने कहा…

इन्सान में हो या जानवर
अटूट बन्धन ही प्रेम है।
जो प्रेम किसी से न कर पाये
जन्म लेना बेकार है।

बहुत सुन्दर पंक्तियों के माध्यम से प्रेम को परिभाषित किया है आपने .होली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

मंगल यादव ने कहा…

धन्यवाद आप सभी को। आप को होली की ढेर सारी
बधाईयां।

हरीश सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर पंक्तियों के माध्यम से प्रेम को परिभाषित किया है आपने .होली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

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