मंगलवार, 15 मार्च 2011

क्या करूँ?क्या ना करूँ?,इसी चक्रव्यूह में उलझा रहता

   

क्या करूँ?क्या ना करूँ?
इसी चक्रव्यूह में उलझा
रहता
करूँ तो क्या होगा
ना करूँ तो क्या होगा
निरंतर सोचता रहता
दिल कुछ कहता
दिमाग कुछ कहता
एक दिन याद गीता की आयी
क्रष्ण ने जो कहा अर्जुन से
बात ध्यान में आयी
कर्म करते रहो
फल की चिंता मत करो
बात दिमाग में बैठ गयी
अब दिमाग से सोचता हूँ
दिल की सुनता हूँ
कर्म करता रहता हूँ  
अब तकलीफ नहीं होती
नींद रात में अच्छी आती
कल की चिंता नहीं होते
ज़िन्दगी पहले से बेहतर
गुजरती 



1 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

स्वागत निरंतर जी. आप नाम के ही नहीं काम के भी निरंतर है.

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