सोमवार, 14 मार्च 2011

पांच रुपया दो....

मंगल यादव, नोएडा
क्षमा करें यह सवाल… ? मुझे नही मालूम आप से पूछना जायज है या नही। लेकिन रोज-रोज मेरे मन में एक ही सवाल उठता है आखिर क्यों अबू जफर आजमी से कोई कुछ जब भी पूछता है तो वो कहते हैं पांच रुपया दो। फिर हंसने लगते हैं। आखिर पांच रुपये ही क्यूं मांगते हैं यह राज मेरे लिए आज तक राज ही बनकर रह गया। और यदि कोई देने की जुर्रत भी करता है तो लेगें भी नही। कहेंगे आओ तुमको चाय पिलाते हैं। यह बात समझ में नहीं आयी आखिर ऐसा क्यूं कहते हैं। मैने जब भी उनसे पूछने की कोशिश की तब वे किसी न किसी बहाने से बात को टाल देते हैं। दरअसल जफर भाई मेरे प्रिय दोस्त हैं जो नई दिल्ली से निकलने वाली एक उर्दू पत्रिका के पत्रकार हैं। आजमगढ़ निवासी ये भाई साहब हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू के अच्छे जानकार भी हैं। ऐसा नही है कि जफर भाई शिक्षित नहीं हैं इसलिए ऐसा बोलते हैं। भाई साहब के जितने भी दोस्तों को मैं जानता हूं सभी से किसी न किसी बहाने जरुर पूछा हूं लेकिन उत्तर किसी के पास नही।



क्या जफर भाई का इशारा आने वाले बढ़ती महंगायी रुपी प्रलय को लेकर हैं तो नही। जिसमें लोगों का सब कुछ बहने वाला है। या फिर उनका संकेत भ्रष्टाचार की राजनीति को लेकर तो नहीं जो सिर्फ पैसे के लिए पता न क्या-क्या कर डालते हैं। या फिर उनका कहने का अर्थ कहीं मीडिया के अन्दर छिपी पेड न्यूज जैसी बात को लेकर तो नही। या फिर समाज में तरह-तरह के ढोंग रचने वाले नकली गेरुआ रंग धारियों के बारे में कुछ कहना चाहते हैं जो ज्ञान देने के नाम पर लोगों का शारीरिक, मांनसिक और आर्थिक शोषण करते हैं। ये बातें किसी से छिपी नही है। क्योंकि आजकल लोग बिना लिए कुछ देते नहीं। संवेदनशील होकर आप सोचिए मेरे ख्याल से यह गंभीर सवाल है-
अगर आप के विचार से कोई उत्तर हो तो कृपया जरुर बतायें जफर भाई के पांच रुपये मांगने के पीछे आखिर क्या राज है....

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