शनिवार, 12 मार्च 2011

लाख रोको,दिल का लगना रुकता नहीं




लाख रोको
दिल का लगना रुकता
नहीं
कब लगेगा
कोई जानता नहीं
किस से लगेगा,
किसी को पता नहीं
क्यूं क़ानून,
मोहब्बत के बनाते हैं लोग
बार बार मोहब्बत ना करना
बताते हैं लोग
कौन है
दिल जिस का नहीं मचलता
क्यूं फिर इंसान
हकीकत से  भागता
निरंतर
मोहब्बत में रोड़ा बनते हैं
लोग
खुद की नाकामी का ठीकरा
दूसरों पर फोड़ते हैं
लोग


12—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर


5 टिप्पणियाँ:

kirti hegde ने कहा…

किसी को रोड़ा न बनने दे जनाब

Kunal Verma ने कहा…

ये मोहब्बत भी क्या चीज है? तडपाता भी यही है और बहलाता भी यही है।

गंगाधर ने कहा…

कौन है दिल जिस का नहीं मचलता, sahi kaha

हरीश सिंह ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति के लिए शुभकामना.

मंगल यादव ने कहा…

दिल तो सभी का मचलता है
इसे कौन रोक पाया है
बिन मोहब्बत के जिन्दगी कहां
साहब आपकी रचना तो दिल छू गयी।

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