बेघरबार,कृशकाय बूढा
लोगों की प्यास बुझाता
चार मटके ले
वृक्ष के नीचे बैठता
नित्य स्वच्छ पानी से
उन्हें भरता
वृक्ष के नीचे बसेरा
उसका बसता
वहीँ सोता वहीँ जागता
जीवन
उसका वहीँ कटत़ा
कमजोर स्वास्थ्य
कर्तव्य से नहीं रोकता
सुबह से संध्या तक
राहगीरों की प्रतीक्षा करता
आशा से उन्हें देखता
मुस्करा कर बात करता
प्यासों की प्यास बुझाता
सेवा में जो मिलता
उस से गुजारा करता
कभी भूखा
कभी आधे पेट रहता
रात भर सो ना पाता
प्रात:समय पर जागता
गिला शिकवा मन में
ना रखता
परमात्मा का
आदेश समझ खुश रहता
शिकायत कभी किसी से
ना करता
कोई प्यासा ना रहे
निरंतर प्रार्थना
परमात्मा से करता
एक दिन ऐसा आया
गहरी नींद में सोया
किसी ने ना उठाया
दिन बीत गया
साँय काल
प्यास ने राहगीर को
ध्यान उसका दिलाया
पास आ
उसने उसे उठाया
वो सदा के लिए सो
चुका था
वर्षों बाद गहरी नींद
सोया था
लोगों की प्यास
बुझाते बुझाते
खुद भूखा प्यासा
संसार से चला गया
खामोश रह कर भी
संतुष्टी का सन्देश
दे गया
05—03-2011
05—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
4 टिप्पणियाँ:
सुन्दर कविता के माध्यम से भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
'खामोश रहकर भी
संतुष्टि का
सन्देश दे गया'
बहुत ही प्रभावशाली भावपूर्ण प्रस्तुति
badhai.
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