सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

अनवर भाई के साथ LBA परिवार को एक खुला ख़त

आदरणीय अनवर भाई और LBA परिवार के सभी भाई बहनों

अनवर भाई, आप शायद कई बातें बहुत जल्दी भूल  जाते हैं.मैंने आपको बड़ा भाई कहा है. और बड़ा भाई छोटे भाई को सँभालने की जिम्मेदारी से भाग जाय भला ऐसा हो सकता है कदापि नहीं, जरा अपनी लिखी बातों पर गौर फरमाए,
""अगर सत्य सुनने से आपको मेरे कहने के बाद भी ऐसा महसूस होता है कि आपको नीचा दिखाया जा रहा है तो मैं आगे से यहाँ कम आऊंगा ।""

आपने खुद ही कहा यहाँ  पर कम  आऊंगा.  यानि खुद छोड़ने की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि कुछ देर के लिए रूठने की बात ही कर रहे है. और रूठने वाले को मनाना  कोई मुश्किल काम नहीं और आप जैसे बड़े भाई  को मनाना  बहुत ही आसान है. मैं आपकी परीक्षा ले चुका हूँ , और आप पूरे  सौ नंबर से पास हुए है.,, यदि बहुत जानकर हैं, यही बता दीजिये आपकी परीक्षा कहा हुई थी, 
आपके अन्दर इंसानियत भरी हुई है, आपका दिल बहुत बड़ा है एक संवेदन शील कलाकार की तरह, एक जहीन इन्सान है पर मेरी नजर में, इस बात पर ध्यान दीजियेगा मैं कह रहा हू मेरी नजर में, यानि एक छोटा कह रहा है अपने बड़े भाई से,  न किसी हिन्दू से और न किसी मुसलमान से, मेरे भावों में न तो अनवर है और न ही हरीश , .....  आपमें लचीला पन नहीं है, आपमें झुकाव नहीं है. इसके पीछे कही न कही अहंकार लगता है. [जबकि यह सच नहीं है] यह दोनों गुण मैं आपमें देख चुका हु, बस उसे आप बाहर निकलने नहीं देते हैं. आपको लगता है की आप कही झुक गए तो कही आपका सम्मान घट न जाय,,,,, जबकि आपका कद सभी की नजरो में बढ़ जायेगा, यह भी मेरा ही विश्वाश है. ........... और जरुरी नहीं की मैं सही ही  हू.



इंसानियत  सभी में है किन्तु हर व्यक्ति की  परिभाषा अपनी अपनी होती है. किन्तु मेरी परिभाषा क्या है उसे मैं बता रहा हू..............,

मैं एक अदना सा इन्सान हु. मैं एक गरीब घर का बच्चा था, मेरी परवरिश किसी बंगले में नहीं. एक कच्चे मिटटी के मकान में हुई, शहर से दूर एक गाँव में हुई, उस गाँव में एक मुसलमान भी आता था, अभिवादन की  भाषा. कुछ और नहीं "जय राम जी की"  होती थी, और हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे "आव हो मौलाना," लोग प्रेम से बैठे रहते थे घंटो बात करते थे, उन लोंगो में मुझे कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं सिर्फ दो इन्सान दिखाई देते थे. धर्म के नाम पर किसी को नीचा दिखने या दिखाने की इच्छा नहीं होती थी, उम्र के हिसाब से सम्मान देने की बात करते थे. और मैंने हमेशा सीखा वही जो देखता था. मैं उम्र को सम्मान  देता हु, रिश्तो को सम्मान देता हु, 

जाती धर्म को नहीं उस संस्कार को धर्म, मान की  जो मुझे विरासत में मिला , आपके धर्म में मां के पैर नहीं छूए  जाते. मेरे यहाँ छूए जाते है, तो मैं अपने मित्र समसुद्दीन मुन्ना {मो.09026783724 } की मां के पैर भी छूता हु क्योंकि वहा  मुझे कोई मुसलमान नहीं दिखता हिन्दू नहीं दिखता बल्कि मां दिखती है. आप ही कहते है न की जन्नत माँ की कदमो में होता है. यह क्यों नहीं कहते जन्नत मुसलमान मां की कदमो में होती है. क्योंकि आप भी मानते है न मां को किसी धर्म में नहीं बँटा जा सकता........ बंटेगा तब जब उसे हम सिर्फ एक औरत के रूप में देखेंगे..... और मेरे जितने दोस्त है वे चाहे किसी जाती  के हो किसी धर्म के हो वे मेरे भाई बन जाते हैं, चाहे बड़े बने या छोटे........  जब उन्हें मैं अपना भाई बना लेता हु तो, उनके सभी रिश्ते को अपना लेता हु तब वे मेरे लिए वे सब हिन्दू या मुसलमान नहीं रह जाते. ...... वे मेरे साथ जमकर होली मनाते हैं और मैं ईद बकरीद पर जमकर दावते उडाता हू . .. क्या मजा आता है ............. आपको एक घटना बताऊ. मेरा एक मित्र है जमाल खान .....  वह मेरे साथ मेरी रिश्तेदारी में गया.... मैंने उसे पहले  ही बता दिया यह सब पुराने ख़यालात के  है. भैया वे ठाकुर साहेब अभी तक बने है...... जमाल का नाम राहुल सिंह कर दिया. वह मेरे साथ एक दिन रहा और राहुल सिंह बनकर मेरे साथ खाया पिया, बात की हंसी मजाक हुआ...  हम चले आये........  उसे भी मजा आता था.....  वह साथ में  आठ बार मेरे साथ गया.    जब वे लोग जाने तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा, हँसे मजाक हुआ फिर भी बर्ताव वही रह गया  क्योंकि  लगाव का रिश्ता बन गया था. मेरी बुआ उसकी बुआ बन चुकी थी. हम दोनों एक सामान हो गए थे.        मुझे नहीं लगता हमारा धर्म भ्रष्ट हो गया.......... हम आज भी हिन्दू है और हिन्दू होने पर हमें गर्व है. ...........   हमें अपने उन मुसलमान दोस्तों पर भी फख्र होता है. जो हमें रोज़ा अफ्तारी में बुलाते हैं जबकि हम रोज़ा नहीं रखते.......  पर अजान होने इंतजार तो हम भी करते है..... जब आपकी अजान होती है...... अल्लाह हो अकबर की सदा गूंजती है तो वहा  भी हमें अपने खुदा अपने  भगवान का एहसास होता है........ वह हमें सबका रक्षक  सबका अभिभावक  दिखाई देता है.....  और वह कोई दो नहीं होते वहां एक ही होता है वह खुदा है की भगवान मैं नहीं जानता........... वह मुझे हिन्दू मुसलमान नहीं मेरा अपना दिखता है........ 

अनवर भाई............. जब हमारे यहाँ दशहरा के दिन दुर्गा प्रतिमा विसर्ज़ान का जुलूस निकलता है तो,,,,, जामा मस्जिद  तकिया कल्लन शाह पर पानी पिलाने का काम करते हैं. ...... तब उन्हें कोई मुसलमान नहीं कहता और वे भी हिन्दुओ का जुलुस नहीं कहते............ वे भी उस जुलुस का सम्मान करते है क्योंकि उस पर्व के साथ मां शब्द जुड़ा है. और मां तो सभी की होती है......   भले  ही शब्दों के साथ किन्तु एक रिश्ते का एहसास तो हो रहा  है............ फिर भी उन्हें मुसलमान हो ने पर गर्व है............



भाई रिश्ता हर धर्म पर भारी है...........यदि माने तो इस्लाम धर्म ही नहीं हर धर्म इंसानियत की शिक्षा देता है........ बस हमारे अन्दर बसी रूढ़िवादिता, हमारे अन्दर बसा अहंकार कही न कही हमारे इंसानियत  को बाहर नहीं आने देता और कभी न कभी विवाद को पैदा करता है............ 



जिस तरह आपको मुसलमान होने पर गर्व है उसी तरह हमें अपने हिन्दू होने पर गर्व है................... लेकिन हम सभी के अन्दर एक इंसानियत धर्म भी होना चाहिए,,,,,,, ताकि हमारे अन्दर एक मजबूत रिश्ता  हो  ..........

और मेरा वही रिश्ता लखनऊ ब्लोगर असोसिएसन से है............ यह मेरा परिवार है..... 

अब सभी से.............

उत्तरप्रदेश ब्लोगर असोसिएसन बनाने पर हमें मिथिलेश को विभीसन, जयचंद कहा गया, दो मुह वाला साप कहा गया... तमाम बाते कही गयी........  डॉ. ने एक छंद छोड़ दिया,,,  कोई बता सकता है की.... मैंने LBA के किस नियम को भंग किया है........ बल्कि अपनी जिम्मेदारियों से भागा नहीं.. प्रमुख प्रचारक के पद को बखूबी निभाया....  मेरा कार्य प्रचार करना था.......... मैंने किये.... UPA बनने के बाद कई ब्लोगरो ने हमारा सहयोग करना शुरू किया......... कई ब्लोगों पर LBA और UPA की चर्चा होने लगी...... काफी दिन से सोये पड़े सलीम भाई भी जग गए..................... LBA का रूप रंग भी बदल गया........... जब रनवे पर दौड़ रही  प्लेन उडान भरनी शुरू की तो कई लोग अपने बेल्ट सँभालने लगे.......... LBA को आगे बढ़ना था वह बढ़ गया जो लोग संभल नहीं पाए वे पीछे रह गए...... अब साथ में UPA भी आगे बढ़ने लगा तो मैं क्या करूँ............. अब शो -रूम के आगे पंचर की दुकान भी चल निकली तो मेरे क्या भूल है.............. सलीम भाई द्वारा दिए गए दायित्व को मैंने बखूबी निभाया है...... बिना कोई नियम भंग किये.....................

मुझे लगा की जिस तरह मेरा विरोध हो रहा है......... मिथिलेश का विरोध हो रहा है............ सलीम भाई, अनवर भाई  भले ही मेरे साथ हैं किन्तु भैया बहुमत का जमाना है........ मैं देख रहा हु हम लोगो के खिलाफ खूब वोटिंग हो रही है................ सरकार गिरने { परिवार को भंग} से बचने के लिए सलीम भाई हमें बाहर का राश्ता दिखाने को मजबूर हो जाय..... तो इस लखनऊ के विधान सभा में प्रश्न पूछने का मौका  फिर मिले की नहीं  नहीं  तो बताईये मेरा धर्म {इंसानियत का} कहा बुरा है......... मैंने LBA का कौन सा नियम भंग किया है....... मैंने अपने पद के साथ कौन सी गद्दारी की है........

आप सभी से मैं रिश्ते बना चुका हू........... आप सभी मेरे भाई है............ जो भी आरोप लगाना है खुलकर लगाईये........ मुझे बुरा नहीं लगेगा.......... मैं सभी का जबाब दूंगा............



मेरी वजह से किसी को भी मानसिक दबाव न हो सभी में परिवार वाद बना रहे...... अब देखिये केंद्र व प्रदेश में परिवारवाद  का ही बोलबाला है. लोग समझने लगे है की परिवार  जितना मजबूत   हम उतने ताकतवर......... तो हमारा LBA ताकतवर रहना चाहिए....  अब हम भगोड़े तो हो नहीं सकते हा परिवार एकजुट रहे इसके लिए क़ुरबानी दे सकते है...........

8 टिप्पणियाँ:

शिवा ने कहा…

आप का लेख बहुत सुंदर लगा, धन्यवाद
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ आकर अच्छा लगा
कभी हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी आए

Saleem Khan ने कहा…

gr8

शिव शंकर ने कहा…

आपमें लचीला पन नहीं है, आपमें झुकाव नहीं है. इसके पीछे कही न कही अहंकार लगता है. [जबकि यह सच नहीं है] यह दोनों गुण मैं आपमें देख चुका हु, बस उसे आप बाहर निकलने नहीं देते हैं. आपको लगता है की आप कही झुक गए तो कही आपका सम्मान घट न जाय,,,


हरीश जी, आपने सही कहाँ लचीलापन अपने अन्दर लाने से इंसान का कद घटने के बजाय और उचा हो जाता है ।
आपके उम्दा और सटीक लेख के लिए आपका आभार ।

Sushil Bakliwal ने कहा…

मिथिलेश भाई ये पूरी पोस्ट और ये सभी मुद्दे मेरी जानकारियों से सर्वथा परे हैं । समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपके विचारों का समर्थन करने के अलावा मैं यहाँ क्या बोल सकता हूँ ?

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

भाई हरीश सिंह जी ! आपकी पोस्ट पढ़कर मेरी आत्मा को आनंद इतना मिला है कि मेरी आँखों से भी अमृत बह रहा है । इस आनंद को खूब महसूस कर हूँ तब ही कुछ कह पाऊंगा और कुछ जरूरी नहीं कि मैं कुछ कहूँ ।
बेऐब केवल ईश्वर अल्लाह है । आपके भाई में कुछ कमी भी है तो आप निभाइये उसे । आपको या दुबे जी को LBA से हटा सके इतना दम तो अभी किसी राक्षस में है नहीं ।
इस पूरे विरोधवाड़े के समूल नाश के लिए मालिक के फ़ज़ल से उसका एक ही बंदा काफ़ी है ।
हम हर जगह साथ रहेंगे LBA में भी , UBA में भी और जन्नत और स्वर्ग में भी इंशा अल्लाह ।

HBFI में भी आपका और दुबे जी का और आपके तमाम समर्थकों का स्वागत है ।
कृप्या अपनी ईमेल आईडी भेजें ताकि यह ब्लागजगत देखे कि असहमति के बावजूद एकता और प्रेम की मशाल से आपस में विश्वास का उजाला कैसे फैलाते हैं LBA बंधु ।

@ जनाब सुशील बाकलीवाल जी ! पूरी बात जानने के लिए निम्न पोस्ट देखना ज़रूरी है.
ईमान की ताक़त परमाणु बम की ताक़त से ज़्यादा होती है The power of Iman

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

पोस्ट पढ़कर तो एक फिल्मी गीत का स्मरण हो आया!
--
जो बात हममें तुममे थी वो बात आम होगई!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ डा. मंयक जी ! आपने सुना है गाना तो जरूर अच्छा होगा । अब आप यह बताएँ कि हमें कैसे सुनने को मिलेगा यह गाना ?

हरीश सिंह ने कहा…

डॉ. मयंक जी, LBA और UPA एक परिवार है यहाँ पर सभी बाते आम होनी ही चाहिए

Add to Google Reader or Homepage

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | cna certification