गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

क्यों लिखता हूँ मैं ------------ सौरभ दुबे

हां कुछ लोगो ने मुझसे पूछा भईया आप ब्लॉगिंग मे क्यूं आये , अभी तो आप बहूत छोटे हैं,और आपको समाज के बारे मे क्या मालुम होगा।तो मैने उन से कहा भईया अपनी बात कहने या एक दुसरे तक पहुचाने के लिये किसी समाजिक ज्ञान कि जरूरत नही होती।मैने तो यही सुना और पढा हैं कि चार लोगो के मिलने से एक समाज बनता हैं।और यहा पर यह ब्लॉग एक समाजिक नेटवर्क हैं .एक बात और समाज मे हम बोल कर अपनी शब्दों को व्यक्त करते हैं,और ब्लॉग पर मौन रहकर यानी लिखकर अपने शब्दों को व्यक्त करते हैं।दोनो ही एक समाज की तरह काम करते हैं।इसीलिये मैने अपने ब्लॉग का नाम कुछ बाते कलम से रखा हैं।इस ब्लॉग के माध्यम से मैं समाज मे होने वाले अच्छी तथा बूरी और युवाओ के लिये प्रेरणात्मक पोस्ट करुंगा ।मुझे देश और संस्कृति से लगाव हैं।अपनी संस्कृति और सभ्यता को देखकर मेरा मन व्याकुल हो उठता हैं।मै गरिबी और अमीरी के बीच जो असमानता फासला हैं।उस को कम करना चाहता हूँ।और भी बहूत कुछ सोचता हूँ देश के बारे मे, पक्षधर हूँ समान शिक्षा का,देश के विकाश कहे जाने वाले किसानो के उपर लगे हुये,गरिबी के ठप्पे को मिटाना चाहता हूँ।
सबको अपनी बात कहने का समान अधिकार होता है,वैसे कविर दास ने कहा है

ऐसी बानी बोलिये , मन का आपा खोय ।
औरन को सीतल करै , आपहुं सीतल होय ॥
और भी एक वाक्य किसी ने कहा था
‘बातहिं हाथी पाइए, बातहिं हाथी पांव’।

उपर वाले दोहे का अर्थ आसा है कि आप जानते होंगे,और दुसरे वाले वाक्य का अर्थ मै बता देता हु,कहने का मतलब यह है कि कुछ लोग बोलने से पहले कुछ सोचते नही बस बोल देते हैं।प्राचीन काल मे कुछ राजा बस वाणी से खूश होकर हाथी दे देते थे।खैर अब तो न राजा रहे और न ही हाथियों के माध्यम से पुरस्कार या सजा देने का चलन।पर आपके बोलने की कला का आज भी आपके जीवन पर लगभग उतना ही प्रभाव पड़ता है।इसलिये जो कुछ भी बोले सोच समझकर बोले।
शब्द सम्हार बोलिये, शब्द के हाथ न पाँव ।
एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव ॥
मेरे कहने का मतलब यह है कि सत्य बोलो,प्रिय बोलो,अप्रिय सत्य मत बोलो।अर्थात कुछ लोग सत्य बोलते है।लेकिन वो एसा सत्य बोलते है कि सामने वाले को बुरा लग जाये।सत्य तो सत्य है ही उसे डाइरेक्ट नही,इनडाइरेक्ट मे बोलना चाहिये।आज के समाज की सोच यह है कि हमें सिर्फ लाभ होना चाहिए चाहे उसके बदले नैतिकता ही क्यों ना दाव पर हो,मै आज के इस समाज के सोच को बदलने के लिये एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ।जिसके लिये मुझे आप सब की सहयोग चाहिये।और एक छोटा सा प्रयास हिन्दी भाषा के लिये हमारा प्रयास हिन्दी का विकास आईये हमारे साथ।
जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

3 टिप्पणियाँ:

Mithilesh dubey ने कहा…

सौरभ जी बढ़िया लिखते हैं आप , उम्मीद करता हूँ कि आप अपने ब्लोगिंग के माध्यम से समाज के लिए कुछ नया करेंगे ।

shyam gupta ने कहा…

सुन्दर विचार....

शिव शंकर ने कहा…

सौरभ जी बढ़िया लिखते हैं आप
अच्छा...सुन्दर..प्रयास सराहनीय।

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